जी 20 और `कमल'

G20 and 'Lotus'
हर भारतीय के लिए यह गौरव और हर्ष का विषय है कि 20 देशों के शत्तिशाली समूह जी-20 की अध्यक्षता भारत को मिलने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की जी-20 की अध्यक्षता का लोगो जारी किया। इसमें राष्ट्रीय पुष्प कमल नजर आ रहा है, जो सारी दुनिया के लिए आशा का प्रतीक है। इससे समृद्धि और शांति झलकती है। इसकी व्याख्या करते हुए प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि कमल सहअस्तित्व और आपसी सहयोग का भी प्रतीक है। उनके इस कथन को रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में भारत की किसी भी खेमे में शामिल न होने की नीति से जोड़ कर भी देखा जा सकता है कि युद्ध से मुत्ति के लिए बुद्ध के संदेश और हिंसा के प्रतिरोध के लिए महात्मा गांधी की आहिंसा में ही आज की दुनिया को बचाने वाला समाधान निहित है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जी 20 के जरिए भारत बुद्ध और गांधी के आहिंसा सिद्धांत की वैश्विक प्रतिष्ठा को नई ऊर्जा दे सकेगा।  

जी-20 समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बरजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) शामिल हैं। यह अंतरराष्ट्रीय आार्थिक सहयोग का एक प्रमुख मंच है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार के 75 प्रतिशत से अधिक और विश्व की लगभग दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। इस विराट संगठन की भारत द्वारा अध्यक्षता के लोगो, थीम और वेबसाइट का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री ने देशवासियों को सही याद दिलाया कि आगामी 1 दिसंबर से भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलना देश की आजादी के 75वें वर्ष में गौरव की बात होगी। बेशक, यह देश के लिए एक महान अवसर है। गौरतलब है कि 20 देशों का यह समूह दुनिया की प्रमुख विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का अंतर-सरकारी मंच है।  

इन दिनों प्रधानमंत्री जहाँ इस बात को बार-बार दोहराते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, वहीं यह भी किसी न किसी बहाने याद दिलाते रहते हैं कि भारत लोकतंत्र की जन्मभूमि है तथा भारतीय जनता के लिए लोकतंत्र कोई आयातित विचार नहीं, बल्कि स्वतः आर्जित स्वभाव है। इस मौके पर भी उन्होंने विश्वास जताया कि भारत दुनिया को दिखा सकता है कि जब लोकतंत्र संस्कृति बन जाता है तो संघर्ष का दायरा खत्म हो सकता है। विकास की संघर्षमूलक धारणा ने दुनिया को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ प्रगति का अर्थ प्रकृति का संहार बन कर रह गया है। इससे पैदा हुई क्लाइमेट चेंज की समस्या भारत की अध्यक्षता के दौरान सामने आने वाली मुख्य चुनौती रहेगी। इस बात को ध्यान में रखते हुए नरेंद्र मोदी ने इस भारतीय जीवन दर्शन को अपनाने पर बल दिया कि सतत विकास पर जोर देते हुए प्रगति और प्रकृति एक साथ चल सकती हैं। भारत अपने अध्यक्षता काल में प्रकृति को निर्जीव संसाधन के बजाय सजीव साथी मानने की धारणा को प्रचारित करके हरित ऊर्जा को बढ़ावा दे सका, तो यह एक बड़ी उपलब्धि  होगी।  

भारत के पास दुनिया को देने के लिए हजारों साल से आजमाए हुए आयुर्वेद और योग की उपलब्धियाँ हैं। इसलिए प्रधानमंत्री का यह कहना बहुत अर्थपूर्ण है कि आज विश्व इलाज की जगह आरोग्य की तलाश कर रहा है। हमारा आयुर्वेद, हमारा योग, जिसे लेकर दुनिया में एक नया उत्साह और विश्वास है, हम उसके विस्तार के लिए एक वैश्विक व्यवस्था बना सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगामी समय में जी 20 के माध्यम से दुनिया भारत की इस परचीन देन को आगे आकर आत्मसात करेगी। 
 
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